एक समय का खिलखिलाता आज़ाद मैदान..... |
बॉम्बे प्रोविन्स से लेकर आज की मुंबई महनगरी बनने तक के सफर में मुंबई में जिन चीजों का योगदान रहा है उसमे से एक अहम है आज़ाद मैदान।
माइलस्टोन साबित हुए क्रिकेट के मैच, राजनीतिक पार्टियों की रैलियाँ, विरोध प्रदर्शन इन सब के लिए यह आज़ाद मैदान जाना जाता है। 25 एकर मेँ फैला यह मैदान के एक कोने में बने बॉम्बे जिमख़ाना क्लब हाउस के चलते सुनील गावस्कर, सचिन तेंडुलकर, विनोब कांबली जैसे नायाब हीरों की खान माना जाता है। यही वो मैदान है जहां किसी भी अन्यायकारी घटना या निर्णय से परेशान होने वाले मुंबईकर अपना आंदोलन कर या भूख हड़ताल कर अपना विरोध जताते है। यहीं पर 1931 मेँ महात्मा गांधी ने तब तक की सब से बड़ी राजनीतिक सभा को संबोधित किया था। भारत का गणराज्य बरकरार रखने के लिए सरकार की गलत नीतियाँ, घटना या किसी निर्णय का विरोध करने का संवैधानिक अधिकार हर देशवासी को प्राप्त है। इसी अधिकार के चलते इस मैदान मेँ लोगों ने पिछले 70 वर्षों मे सरकार के कई सारे निर्णयों को चुनौतीयां दी है और सरकार को उनके विरोध प्रदर्शन के सामने झुकना भी पड़ा है। लेकिन अब मेट्रो लाइन 3 प्रोजेक्ट की वजह से इस अधिकार का हनन हो रहा है। 22 पिचों पर होने वाला क्रिकेट सिकुड़ गया है और आंदोलन कर्ताओं को अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए किराए पर लिए घर की तरह एक कोना दिया गया है। जहां पहले आंदोलन कर्ताओं के डफली की गूंज सामने के बृहन्मुंबाई महानगर पालिका के गलियारों मेँ गूँजती थी वहीं अब उस आवाज़ पर पहरे बैठा दिये गए है।
आज़ादी छीना हुआ उदास आज़ाद मैदान... |
26 फरवरी 2014 को इस प्रोजेक्ट को राज्य की मान्यता मिल जाने के बाद होंगकोंग की AECOM Asia, जापान की पडाको (Padeco), अमरीका की LBG Inc और फ्रांस की Egis Rail इन कम्पनियों का एक संगठन बना कर इने आम सौंप दिया गया है। 2016 से इसपर काम शुरू हो गया है जिसमे धारावी से बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स जाने के लिए मीठी नदी के नीचे 170 मीटर्स का एक टनेल बनाया जा रहा है। यह कोलकाता के हुगली नदी के नीचे बने टनेल के बाद देश का दूसरा नदी के नीचे से जाने वाला टनेल होने वाला है।
ऊपर से बहुत प्रागतिक दिखने वाले इस प्रोजेक्ट की वजह से मुंबई के प्रकृतिक रचना को बहुत बड़ा नुकसान होने की आशंका जताई जा रही थी और इसका काम शुरू होने के बाद इसके असर भी दिख रहे है। इस मेट्रो के लिए आज़ाद मैदान मेँ 150 मीटर जमीन के नीचे खोदने के बाद इसके करीब के मुंबई मराठी पत्रकार संघ की 2011 मेँ बनी और संघ के सभी पत्रकार सभाओं मेँ सबको पानी देने वाली बोरवेल इस मे महीने मेँ पूरी तरह से सुख चुकी थी। इस साल बारिश जादा होने से अब (सितंबर महीने मेँ) 10 फिट भर गई है। लेकिन आज़ाद मैदान के आसपास के भूमिगत सभी झरने सुख गए है। इसी की वजह से मे महीने मेँ इसे पानी नहीं था वरना भूमिगत झरनों की वजह से संघ मेँ पानी की किल्लत कभी होती नहीं थी। सिर्फ पत्रकार संघ ही नहीं, इसके साथ बृहन्मुंबाई महानगर पालिका और स्टाफ क्वार्टेर्स की बोरवेल भी सुख गई है।
भारी बारिश की वजह से अब यह मुंबई मराठी पत्रकार संघ की बोरवेल 10 फिट भर चुकी है। |
वाकई? |
यह हाल सिर्फ आज़ाद मैदान और आसपास के इलाके का है तो सोचो की जब यह 33.5 किमी का प्रोजेक्ट पूरा बनेगा, जिसमे मीठी नदी के नीचे से टनेल भी जाएगा तब महोल कैसा होगा। हमे पानी की आवश्यकता है या बीजिनेस एक दूसरे से मिलाने की। क्या अब वो नहीं मिल रहे? मेट्रो आने से ट्रेन की भीड़ कम होगी, रास्ते की भीड़ कम होगी क्या यह मात्र वहम नहीं है? क्या मेट्रो का टिकट आम आदमी की जेब के लिए भारी नहीं है? क्या महज 2 स्टेशन का मेट्रो का मासिक पास ट्रेन के मिरारोड से चर्चगेट के फर्स्ट क्लास मासिक पास जितना नहीं है? बात प्रदूषण कम करने की करें तो दिल्ली मेँ मेट्रो है, क्या वहाँ प्रदूषण नहीं है? क्या वहाँ ट्राफिक जैम नहीं होता? क्या वहाँ की ज़िंदगी मुंबई से आसान है? अगर नहीं तो क्यों यह जद्दो जहद की जा रही है?
इसी साल हमने देखा की मीठी नदी का जल रिसाव न होने के कारण मुंबई मेँ पानी भर गया। क्या हम मेट्रो की वजह से मुंबई को पूरी तरह से जलमय बनाना चाहते है? अगर नहीं तो इसे रोक्न बहुत जरूरी है। ऐसा नहीं की इस मेट्रो लाइन के खिलाफ विरोध नहीं हुआ। लेकिन अब जिस तरह से आरे कॉलोनी के पेड़ मेट्रो कारशेड के लिए 2700 पेड़ काटे जाने का प्रस्ताव लाया गया है उससे लगता है की यह मेट्रो लोगों की जिंदगी आसान बनाने के बजाय, सांस लेना भी मुश्किल करने वाली है। अब मेट्रो के पूरे प्रोजेक्ट का ही विरोध करने का वक़्त आ गया है। जितना मेट्रो ने दिया या छीन लिया है उतना काफी है। अब बस, अब इसे रोक दो। मेट्रो की यह रफ्तार हमारे जीवन को उतनी ही रफ्तार से पटरी से उतार देगी। इसलिए अभी कदम उठाना जरूरी है। अभी तो आज़ाद मैदान की आज़ादी छीन ली है, कल को हमारा जीवन यह मेट्रो छीन लेगी।
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