7 सितंबर 2019


प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के यह शब्द न केवल भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान के सभी वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई करते हैं बल्कि हमारे जैसे कई लोगों का भी मनोबल बढ़ाते हैं जो अपने जीवन में अखिल मानव समाज के हितों के रक्षा हेतु कुछ अच्छे काम करना चाहते हैं। आज चंद्रयान 2 मध्यरात्रि के 1.50 बजे चाँद के सतह से महज 2.1 किमी की दूरी पर था की तभी उससे संपर्क टूट गया। इतने करीब जाने के बाद विक्रम लैंडर चाँद की धरती पर उतरा या नहीं इसके कोई संकेत मिल नहीं सके। और जब संकेत नहीं मिले तब सालों की मेहनत पर पानी फेर जाने की भावना किसी अपने से बिछड्ने के बराबर हो जाती है। प्रधान मंत्री खुद इस्रो में रात भर रुके रहे और फिर सब के काम की सराहना कर वहाँ से निकाल गए। उन्हे भी कहीं न कहीं आशा थी की विक्रम से संपर्क हो जाएगा। लेकिन सुबह तक जब वो नहीं हुआ तब भली सुबह साड़े आंठ बजे प्रधान मंत्री ने इस्रो के सारे वैज्ञानिक, पूरे देश और विदेशों में भी इस अभियान पर नजरे गाड़े बैठे लोगों संबोधित करते हुए छोटा ही लेकिन बड़ा ही प्रेरणादायी भाषण दिया।



इसी दिन हमने इस वेबसाइट “इतिवृत्त डॉट कॉम” का आरंभ भी किया है इसका हमें गर्व है।
“विज्ञान में विफलता नहीं होती, सिर्फ प्रयास और प्रयोग होते है। आप मख्खन पर नहीं पत्थर पर लकीर खींचने वाले लोग है। पूरा देश आपके साथ है।“ प्रधान मंत्री जी के यह शब्द यकीनन किसी भी दुखी दिल को मजबूती दे सकते है। प्रधान मंत्री जी ने इस घटना को यह कह कर रूमानी जामा भी पहना दिया की “हमने चाँद के बारे में इतनी रोमॅन्टिक बातें कही हैं की हमारा विक्रम लैंडर भी उसे देखते ही उसकी तरफ दौड़ पड़ा होगा।“ उस वक्त देखने वालों को शायद ऐसा भी लगा हो की चलो ठीक है, शायद अपनी रूमानियत से विक्रम लैंडर बाहर आ जाए तो हमसे संपर्क भी कर लेगा। लेकिन यह लेख लिखने तक भी विक्रम लैंडर महाशय शायद चाँद के ही आगोश में होंगे।    

7 सितंबर 2019.... आज का दिन भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण दिन माना जाएगा। क्योंकि अगर सफल रहता तो चाँद पर अपना यान भेजने वाला भारत दुनिया का छटे नंबर का देश बन जाता। यह अभियान सफल नहीं हुआ लेकिन इसे असफ़ल भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि ओरबिटर अब भी चाँद के चक्कर काट रहा है और बहुत करीब जाने के बाद विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया।   



यह शायद संयोग ही कहा जाएगा की धरती से चांद्रयान 2 का संपर्क टूट जाने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीजी ने मुंबई का संपर्क नेटवर्क बढ़ाने वाले मुंबई के मेट्रो 10, मेट्रो 11 और मेट्रो 12 मार्ग का विमोचन किया। चांद्रयान 2 हो या मुंबई मेट्रो, दोनों ही चीजें विज्ञान का अज़ीम नमूना ही है लेकिन इन दोनों की आवश्यकताओं पर बहस हो सकती है। जहां चांद्रयान 2 पूरे विश्व में भारत की गरिमा बढ़ाने मे मददगार हुआ है वहीं अभी तक बनी मेट्रो मुंबई जैसे महानगर समस्याएँ सुलझाने में कोई बड़ा योगदान नहीं दिया है। मेट्रो हो या रेल्वे, यह दोनों सार्वजनिक वाहन उनके निश्चित स्थानकों तक ही यात्रियों को पहुंचाती है। रेल्वे ने आज तक जो किया वही मेट्रो करती है। मेट्रो स्थानक से अपनी जगह पर जाने के लिए बस या ऑटो का उपयोग करना ही पड़ता है। लेकिन रेल्वे की जगह मेट्रो का विकल्प यात्रियों के लिए फायदेमंद बिलकुल भी नहीं है। अपने अनुभव से बताती हूँ की मेट्रो का महज 2 स्टेशन का एक महीने का पास रेल्वे के मिरा रोड से चर्चगेट के पहले दर्जे के पास से भी ज्यादा है। मेट्रो की तरफदारी करने वाले लोग कहते है की घाटकोपर से अंधेरी आने के लिए दादर से होकर आना पड़ता था और मेट्रो की वजह से सीधे घटकोपर से अंधेरी आ सकते है। लेकिन क्या आपने इस यात्रा का टिक़ट देखा है? यह रेल्वे के मासिक पास से तीन गुना ज्यादा है। अगर घाटकोपर से अंधेरी का ही मसला था तो यह यात्रा इन दोनों स्थानकों के बीच रेल यात्रा बनाके भी हल हो सकता था, जिससे आम आदमी को भी इसका फायदा होता, लेकिन मेट्रो की चमक में जिनकी आंखे चका चौंद हो गई है उन्हे यह समस्या नहीं दिखेगी।

प्रधान मंत्री जी ने आज जिस मेट्रो 10 मार्ग का विमोचन किया है वो ठाणे के गायमुख से मिरा रोड के शिवाजी चौक तक का इलाका है जो की महज 10.8 किमी का इलाका है। क्या इतने छोटे से इलाके के लिए मेट्रो पर इतना खर्च करना जरूरी है? आज भी लोग इस इलाके की यात्रा टीएमटी, महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट की बसे और ऑटो से करते हैं। हम जब कहते है की जब देश में इतनी गरीबी होने के बावजूद चांद्रयान पर करोड़ो रुपये खर्च करने की जरूरत क्या है? तब यह मेट्रो की बात क्यों नहीं उठाई जाती। कुछ गिने चुने लोग है जो मेट्रो का विरोध करते हैं। लेकिन उनकी आवाज़ जहां पहुंचनी चाहिए वहाँ तक पहुँचती नहीं, और अगर पहुंची भी तो उसे नजर अंदाज़ कर दिया जाता है। बड़े बड़े ऑफिसेस में काम करने वालों के लिए मेट्रो की यात्रा सहज हो जाती है क्यों यह वो ही लोग होते हैं जो रेल्वे की यात्रा पहले दर्जे से करते हैं। मैं खुद इसका जीता जागता उदाहरण हूँ। कहने वाले यह भी कहते हैं की मेट्रो से गरीब तपके के लोग भी यात्रा करते हैं। तो मेरा सवाल यह है की क्या आपने उनसे कभी पूछा है की वो लोग उसपर रेल्वे के मुक़ाबले कितना ज्यादा पैसा खर्च करते हैं?

कोई भी नया कन्स्ट्रकशन होता है तब वहाँ की जमीन में कुछ बुनियादी बदलाव होते है। रेल्वे की पटरियाँ बिछते वक़्त भी यह हुआ होगा। लेकिन उसका असर उतना नहीं था क्योंकि उसके निर्माण के वक़्त पर्यावरण और शहर निर्माण के नियमों का पालन भी हुआ होगा। अब मेट्रो के निर्माण में उन सभी नियमों को उलटा लटका दिया गया है। अनगिनत बातें हैं जो शायद हमें पता भी नहीं और मौसम में होने वाले भयंकर बदलाव समझने की अक्ल हम में नहीं है। बई की रचना गलत तरीके से हुई और यह और भी ज्यादा रौद्र रूप धरण कर रही है यह बात कई लोगों ने कही है। बारिश में मुंबई की होने वाली तुंबई, ट्राफिक की समस्या, प्रदूषण यह सब भारत के नक्शे पर चुटकीभर दिखने वाली मुंबई में हो रहा है।
लोग यह भी कहते है की नई चीजों को हमेशा विरोध होता है। ट्राम बंद कर रेल्वे शुरू की गई तब भी विरोध हुआ था। और आज भी जब सार्वजनिक परिवहन की बात होती है तब पुराने लोग ट्राम को याद करते हैं। 



मान लीजिये की ट्राम बंद करना उनके हिसाब से गलत फैसला था, लेकिन ना उस जमाने में मुंबई की आज के जितनी जनसंख्या थी और ना ही ट्राम और ट्रेन के किराए में जमीन आसमान का फर्क था, यह बात भी ध्यान में रखनी होगी।
आज मेट्रो जैसा चमचमाता परिवहन लाना जरूरी नहीं लगता। हो सकता है की रेल्वे कुछ सालों में बंद ही हो जाएगी। एक पूरा मंत्रालय बंद होने की बात से ही डर जरूर लगता है लेकिन मान लेते हैं की कुछ सालों बाद रेल्वे बंद हो जाएगी और सिर्फ मेट्रो और मोनो ही मुंबई की लाईफलाईन होगी। लेकिन क्या तब उससे सफर करने वाले सभी लोगों का जीवन स्तर भी बढ़ा होगा? अमीर और गरीब की जो खाई आज मुंबई में दिख रही है क्या वो बुझा दी जाएगी? अगर हाँ तो शायद यह मेट्रो का फैसला ठीक भी लगे। लेकिन पर्यावरण के लिए कौनसे विकल्प आएंगे?
चांद्रयान के लिए हमें जितना गर्व है उतना ही अफसोस मेट्रो के पूरे प्रोजेक्ट पर है। मेट्रो के फायदे और नुकसान को एक तराजू में रखे तो नुकसान का पलड़ा भारी होगा। मेट्रो का समर्थन करने वाले सभी लोग इन बातों का खयाल रखेंगे यह अपेक्षा है। चांद्रयान से हमारा संपर्क टूटा और प्रधानमंत्रीजी ने पूरे विश्वास से कहा की अभी संकल्प टूटा नहीं लेकिन बात यह है की आम लोगों की परेशानियाँ कम करने का संकल्प तो अभी बाकी है। जैसे की महान मराठी कवि नारायण सुर्वे ने कहा था की आम आदमी अब भी अपनी रोटी की गोलाई में पूनम का चाँद देखता है। संकल्प उस दिन का होना अभी बाकी है जब रोटी के चंद्रमा के लिए उसे जान हथेली पर लेकर ट्रेन से लटकना ना पड़े। विज्ञान की सहायता से हम दूसरी दुनिया का विकल्प ढूंढ रहे हैं लेकिन फिलहाल रोज अपने घरों से निकलते वक़्त वापस लौट कर आने का निश्चय करने वालों के सामने रोटी के चंद्रमा का कोई विकल्प नहीं....