किसी जल्लाद सा है तेरा चेहरा ऐ जिंदगी
कब डोर खींच दे तू, कुछ पता नहीं...
कुछ मुमकिन कुछ नामुमकिन सी लगती हो,
किस गुनाह की सजा देती हो, कुछ पता नहीं....
मेरा हौसला लड़खड़ा सा जाता है,
तेरे हाथ के छल्ले देख कर,
छुप जाना चाहती हूँ सबसे मगर,
कैसे लू खुद की पनाह, कुछ पता नहीं...
तुम लहरों सी टकराती हो,
कहती हो कि बह जाओ अनंत में,
अभी साँस भी, आस भी, प्यास भी बाकि है मेरी
छलांग कैसे लगाऊ, कुछ पता नहीं....
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